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आदरनीय ब्लॉगर समुदाय,
मुझे लज्जा आ रही है की मैंने इस समूह में घुसाने से पहले आप को अपना संक्षिप्त परिचय क्यों नहीं दिया. तो यह तो होना ही था. क्योकि मुझे यह छोटी औपचारिकता भी ज्ञात नहीं थी. यह तो आभारी हूँ श्री अजय कुमार पाण्डेय जी का जिन्होंने मुझे याद दिलाया.
मई गया (बिहार) का रहने वाला हूँ. राजस्थान पर्यटन मंत्रालय जयपुर में कार्यरत हूँ. पत्नी एक प्राथमिक पाठशाला में अध्यापिका है. शिक्षा मेरी अर्थ शास्त्र में स्नातकोत्तर है. मेरी उम्र 45 वर्ष से ऊपर है. मुझे हिंदी, अंगरेजी एवं डोंगरी भाषा का ज्ञान है. हमारे यहाँ राजस्थान पत्रिका नामक समाचार पात्र ज्यादा पढ़ा जाता है. जिसमें विविध उत्कृष्ट लेख एवं विचार प्रकाशित होते रहते है. एक अंक उसमें ज्योतिष मीमांसा नामक आता है. उसमें मैंने परमादरणीय श्री आर. के. राय का एक ज्योतिषीय लेख पढ़ा था. उनके लेख से प्रभावित होकर मैंने उस लेख के नीची दिए गए विविध लिंक पर उन्हें ढूँढना शुरू किया. उसी में एक जागरण जंक्सन भी था. बहुत प्रयत्न करने के बाद इस लिंक का भेद मुझे मालूम हुआ. फिर मैंने कुछ और परिचितों से इसके विषय में जानकारी ली. और मैंने अपना पञ्जीकरण कराया. लेकिन फिर भी मुझे इसके तकनीकी ज्ञान का पता नहीं चला. दो चार दिन बाद मैंने ऐसे ही प्रयत्न किया तो यह लिंक खुला. खोलते ही श्री राय जी का एक लेख सामने पड़ गया. सच मच मई मन्त्र मुग्ध हो गया. फिर एक एक कर मैंने बहुतेरे लेख पढ़ डाले. जल्दी जल्दी में मैंने एक पोस्ट प्रकाशित करवा दिया. मानव मस्तिष्क की उपज के रूप में मुझे अनेक विधा वाले लेख पढ़ने को मिले अभी एक कोई योगी जी है. उनका लेख भी मुझे पसंद आया है. एक लेख एच पी सिंह जी का पढ़ने को मिला. मुझे बहुत अच्छा लगा. एक आध लेखिकाएं भी अच्छी साहित्यिक रचनाएँ करने में सिद्ध हस्त लगी है.
अभी मैंने यह नहीं सोचा है की मई अपनी बात कैसे लिखू. क्योकि कई बातें बड़ी अजीब लगी है. मई उनका उल्लेख कर यहाँ उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता.
मई गिनती तो नहीं कर सका हूँ की कितने लेखक अभी इस मंच पर है. लेकिन मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है की उद्देश्य, कला एवं मर्यादा की कसौटी पर बहुत कम रचनाएँ ही खरी उतरेगी. मई यहाँ पर यदि नाम का उल्लेख करूंगा तो जिनका नाम नहीं आयेगा वह मुझसे घृणा करने लगेगा. इसलिए आपलोग क्षमा करेगें.
मेरी रूचि ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथाओं, उद्धरणों एवं लेखो को पढ़ने, ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण करने एवं एकांतवास में है.
यद्यपि मुझे अभी लिखने के बारे में कुछ पता नहीं है. इसलिए मई अभी इस मंच के लेखो को पढ़ रहा हूँ. सबके भाव, मानसिकता एवं लक्ष्य का आंकलन कर रहा हूँ. उसके बाद निर्धारित करूंगा की मुझे अपनी बात कैसे प्रस्तुत करनी चाहिए.
अभी मुझे इस ब्लॉग लिखने एवं इसे भेजने का तकनीकी प्रकार जानना है. वैसे मुझे लग रहा है की मई भी अपनी मन की बात इस मंच पर रखने में कामयाब हो जाउंगा.
मुझे इस छोटे अंतराल में जो बात समझ में आयी है उसके सम्बन्ध में मई यही कहना चाहूंगा की यहाँ सबको अपना मत रखने की स्वतंत्रा प्राप्त है. जिसको जो अच्छा एवं रुचिकर लगे वह पढ़े. किसी के ऊपर अपना विचार जबरदस्ती थोपने का प्रयत्न न करे. इससे लिखने वाले की मौलिकता भंग हो जायेगी. किसी विषय को प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएं. इससे निकटता के बजाय दूरी ही बढ़ेगी. और यह अवसर जो मित्रता स्थापित करने का मिला है, वह विभाजित होकर वर्त्तमान भारत की विविध राज नीतिक पार्टियों की तरह उद्देश्य विहीन, कला विहीन एवं आदर्श विहीन हो जाएगा.
यह मेरी प्रार्थना है. वैसे जिन्हें आदत पड़ चुकी है, उनसे मई क्षमा प्रार्थी हूँ.
मात्रा एवं स्वर व्यंजन की त्रुटियाँ मुझे स्वयं दिखाई दे रही है. किन्तु मुझे पता अभी नहीं चल पा रहा है. आप लोगो का प्रोत्साहन एवं आशीर्वाद रहेगा तो धीरे धीरे सुधार लूंगा.
निवेदक
प्रकाश चन्द्र पाठक
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