जिस सिद्धांत का व्यावहारिक जीवन में कोई उपयोग न हो उसके निरूपण या अस्तित्वीकरण से क्या फ़ायदा? सिद्धांत का तात्पर्य यह होता है क़ि उससे जीवन में लाभ प्राप्त किया जा सके. उसका अनुकरण किया जा सके. आज बाण भट्ट की कादंबरी नामक कृति क्यों नहीं ज्यादा लोक प्रिय हो सकी? और तुलसीदास का राम चरित मानस घर घर की शोभा बन चुका है. उसके पीछे कारण यह है क़ि कादम्बरी या कथा सरित्सागर ऱस, भाव एवं प्रेम से परे व्याकरण के कठिन नियमो से आबद्ध क्लिष्ट शब्दों से गुम्फित दुर्गम गद्य कृति है. जब क़ि तुलसी कृत राम चरित मानस एक ऱसमय, प्रेमपूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से ओत-प्रोत गेय रचना है. जो जन साधारण के लिए सुगम एवं सरल है. इसी प्रकार सामाजिक पहलुओं को उजागर करने की चेष्टा में किसी एक पहलू को प्रकाशित करने के लिए दूसरे अति महत्वपूर्ण एवं उपयोगी भाग को उपेक्षित करना ठीक उसी तरह होगा जैसे सर काट कर बालो में सुगन्धित तेल मालिस करना. जब सर ही कट गया तो बालो में तेल लगाने की क्या उपयोगिता? बहुत ज्यादा बुद्धि मान कोई व्यक्ति सतही हकीकत से दूर कोरी कल्पना के कागजी घोड़े दौडाने लगे तो उसकी बुद्धि का क्या फ़ायदा? इस मंच पर अनेक धुरंधर साहित्यकार, कवी, समाज सुधारक, आलोचक, विश्लेषक, ज्योतिषी, धर्मवेत्ता एवं राजनीतिज्ञ महापुरुषों का भयंकर जमावड़ा मौजूद है. सब अपने फन में माहिर है. अपनी कलाओं के प्रदर्शन हेतु हर संभव दाव पेंच का धड़ल्ले से मंचन कर रहे है. बहुतो को तो इससे कुछ लेना देना ही नहीं है क़ि कोई क्या लिख रहा है? बल्कि वह क्यों इतना अच्छा एवं सही लिख रहा है. इससे उनकी शान में बट्टा लग रहा है. यही नहीं दादागिरी जताते हुए यह तक धौंस दिखाना शुरू कर देते है क़ि उनका सक्रीय गैंग जागरण मंडल से सिफारिस करेगा क़ि उसकी रचनाओं को इस मंस्च पर तरजीह न दिया जाय. जैसे लगता है क़ि जागरण मंच उनके घर की बपौती जायदाद है. और वे जो चाहें मंच पर वही होगा. चाहे उनके अनाप सनाप निरर्थक लेखो से ही पूरा जागरण मंच क्यों न पटा हो? आज चाहे शिक्षा हो या धर्म, राजनीति हो या व्यापार, नौकरी हो या प्रशासन हर जगह ज़हरीली धांधली प्रजातंत्र के कोढ़ के रूप में अपना अंगद पाँव जामाए बैठ गयी है. अगर मेरी बात नहीं मानी गयी तो हड़ताल कर देगें. अगर परीक्षा में पास नहीं किये तो स्कूल में टाला लगा दिया जाएगा. अगर अपराधियों को कारागार से मुक्त नहीं किये तो हम संसद पर धरना देगें. वही सियासत अब जागरण मंच पर भी शुरू की जा रही है. अगर हमारी बात नहीं मानी गयी तो हम जागरण मंच पर सियासी जाल फैला देगें. हम महिमा मंडित, प्रकांड पंडित, सुदृढ़ जनाधार वाले तथा पुराने अनुभवी मंचन करने वाले है. अगर हम लिखना बड़ कर देगें या हमारी “पार्टी” ने लिखना बंद कर दिया तो आप की सरकार रूपी यह मंच अल्प मत में आ जायेगी. और आप का तख्ता पलट हो जाएगा. एक यही मंच शायद बचा था जहां पर ऐसी घृणित राजनीति एवं षडयंत्र नहीं था. किन्तु ऐसा लगता है क़ि यहाँ पर भी यह संक्रामक रोग अपना जड़ फैला रहा है. क्योकि कुछ “ब्लॉगर माफिया” यहाँ पर भी अपनी “ब्लॉगर पार्टी” एवं जनाधार बनाने की कवायद में जुट गए है. जी हाँ’ यह सत्य है क़ि जिसे यह पता नहीं क़ि समाज किसे कहा जाता है, वह समाज सुधार की बड़ी लम्बी चौड़ी बातें करता है. जिसे पता नहीं क़ि रिश्ता किसे कहते है, वह किसी को भी “बहन जी” एवं भाई जी” कहने लगता है. जिसे पता नहीं क़ि मा की गुरुता क्या होती है वह जिस किसी को भी माता कह संबोधित करने लगता है. जिसे पता नहीं क़ि गाली सहने की शक्ति कैसी होनी चाहिए, वह दूसरो को गाली देने लगता है. और जिसने तय कर लिया हो क़ि चाहे सार्थक हो या निरर्थक, उपयोगी हो या अनुपयोगी, गलत हो या सही ब्लॉग लिखने का तात्पर्य पार्टी बनाना है, ब्लॉग की विषय वस्तु से नहीं तो वह तो कुछ भी लिख या बोल सकता है. अब पता नहीं जागरण मंडल के पास ब्लॉगर मापने का क्या पैमाना है. एक पैमाना तो देखने में आया है और वह है ज्यादा से ज्यादा प्रतिक्रिया प्राप्त ब्लॉग. किन्तु यह तो कसौटी ब्लागर्स की है. जागरण मंडल की कसौटी क्या है, यह पता नहीं. प्रतिक्रियाओं को देखें. उनकी भाषा देखें. उनकी विषय वस्तु देखें. “बहुत सुन्दर”, अति विचित्र. क्या खूब है, बहुत अच्छे लिखते है. सुन्दर रचना, दिल को छू लेने वाली रचना, मर्मस्पर्शी लेख, बधाई हो, आभार, धन्यवाद, स्वागत है.” इससे आगे कहने की न तो हिम्मत है न सहूर, और धमकी देते है जैसे जागरण मंच सिर्फ इनके भरोसे ही चल रहा है. खैर, जो भी हो, जागरण मंडल ऐसा नहीं है क़ि इस तथ्य से अपरिचित है. पर शायद उसके पास भी अपनी कुछ मज़बूरियाँ है जिसकी सीमा में वह बंधा हुआ है. तथा इस मंच की इस दादागिरी को तरजीह दे रहा है. पाठक
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