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गदहा पुराण-गर्दभ देश का खच्चर राजा

भविष्य
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आप ने कुँए का मेढक तों सुना होगा. किन्तु आप यहाँ नाली के मेढक को पढ़कर चौंक गये होगें. तों चलिए, आप ने कुँए के मेढक के बारे में तों बहुत पढ़ा होगा. अब ज़रा नाली के मेढक के बारे में जान लीजिये. अक्सर गंदी नालियों में जो मेढक होते है वे काले या मटमैले रंग के होते है. किन्तु जो पोखरे या तालाब में या खेतो में मिट्टी में दबे होते है, वे कुछ पीलापन लिये होते है. इसी तरह का एक मेढक किसी एक अति उपजाऊ खेत में मिट्टी के नीचे दबा पडा था. बरसात का मौसम आया और मिट्टी के पोली होते ही उसने बाहर का संसार देखा. मिट्टी के अन्दर जब तक रहा तब तक तों उसे लग रहा था कि उसके समान सुन्दर गोरे बदन वाला मोटा तगड़ा एवं हृष्ट-पुष्ट कोई है ही नहीं. किन्तु जब एक से एक मेढक अनेक रूप-रंग एवं आकार-प्रकार वाले दिखाई दिये तों उसके होश फाख्ता हो गये. उससे भी ज्यादा ऊंची आवाज़ में टर्र, टर्र कर शोर मचाने वाले मेढक चारो और घूमते नज़र आये. अब तों उसने जो सोच रखा था कि मै जब मिट्टी से बाहर निकालूँगा, सबका प्रधान बन कर रहूँगा. सब मेरा कहना मानेगें. चारो और मेरी ही जय जय कार होगी. ह़र तरफ मेरा रुतबा होगा. जिधर भी निकलूँगा, सब मेरे सम्मान में झुक जायेगें. किन्तु यहाँ तों नज़ारा ही और कुछ था. उसके सारे सपने हवा हो गये. उसकी आशाओं पर तुषारापात हो गया.
अब लगा सोचने कि अपनी इस आकृति का कैसे लाभ उठाऊं. तब वह उस खेत से उछलता कूदता पास के गाँव के एक गंदे नाले के पास पहुंचा. उसने उसमें नीचे झाँक कर देखा तों अनेक छोटे छोटे मेढक तैरते दिखाई दिये. एक बात ज़रूर थी, वहां खेत में अपने साथियो के बीच खुली हवा में, एवं मधुर सुगंध तथा फूल-पौधों वाले पर्यावरण में रह रहा था. किन्तु इन साथियो के बीच सडांध, गन्दगी एवं ज़हरीला भोज्य पदार्थ ही था. उसने सोचा कि चाहे कितनी भी गन्दगी में रहना पड़े, कितनी ही बदबू मिले और चाहे कितना भी विषैला भोजन क्यों न मिले, यहाँ रहूँगा तों इनका मुखिया बन कर. बस इतना सोच कर वह उस गंदे सजातियों के बीच छलांग लगा गया. नाले के मेढक इतना बड़ा, भड़कदार रंग वाला अपना बिरादर देख कर भौंचका रह गये. उन्हें लगा कोई अपना बिरादर देवलोक से उनकी सहायता एवं उत्थान के लिये आ गया हो. बस फिर क्या था? सब उसके आव भगत में मन, कर्म एवं वचन से तल्लीन हो गये. कोई उसके टांगो क़ी प्रशंसा करने लगा. कोई उसके रंग क़ी प्रशंसा करने लगा. कोई उसके बड़े शरीर तथा कोई उसकी ऊंची आवाज़ क़ी वाह वाही करने लगा. और वह मेढक अपने उन निकृष्ट सहयोगियों के साथ गन्दगी में अपना दिन रात बिताते हुए उन बदबूदार मेढ़को का बादशाह बन कर रहने लगा.
कुछ दिनों बाद जब बरसात का मौसम समाप्त हो गया. जाड़े का प्रभाव होना शुरू होने लगा. तब सारे मेढक अपनी सुविधा एवं रूचि के अनुसार अपने अपने स्थान क़ी और प्रस्थान करने लगे. इधर उस गंदे नाले में बहुत दिनों तक रहने के कारण उस मेढक का भी पीला रंग बदल कर काला हो गया. विषाक्त भोजन एवं ज़हरीला पर्यावरण में रहते रहते वह भी विविध व्याधियो का शिकार हो गया. शरीर भी सूख कर काँटा हो गया. तब उसे अपने पुराने आवास क़ी याद सताने लगी. एक दिन वह ऊब कर उस गंदे नाले से बाहर छलांग लगाया. किन्तु बाहर उसे पकड़ने के लिये कौवा झपट पडा. फिर वापस वह नाले में कूद पडा. दूसरे दिन वह रात में नाले से बाहर छलांग लगाया. बाहर खडा गीदड़ उसे पकड़ने दौड़ा. वह झट पट फिर नाले में कूद गया. एक दिन इसी प्रकार वह बिल्कुल सुबह नाले से छलांग लगाया. और बाहर खेलने वाले छोटे छोटे लडके उसे पत्थर आदि से मार डाले.

विद्वता दिखानी हो तों विद्वानों के बीच दिखाओ, जाहिलो क़ी वाह वाही में मेढक क़ी तरह मारे जाओगे.

क्रमशः————————————–
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