आज भारत में नारी उद्धार, नारी उत्थान, नारी अभ्युदय एवं नारी सशक्तिकरण आदि नाम से पता नहीं कितने संगठन बरसाती मेढक के सामान अवतरित हो गए है. वास्तव में आवारा गर्दी एवं निठल्लेपन का भर पूर आनंद उठाने के लिए इससे बढ़िया एवं उपयुक्त साधन और कोई अभी अब तक दिखाई नहीं देता है. थोड़ी स्कूली शिक्षा प्राप्त एवं आधी अधूरी पाश्चात्य सभ्यता को अपनाए कुछ पथभ्रष्ट एवं अश्लील औरतो का समूह बनाकर बाज़ार, गली, नुक्कड़ आदि में सभाएं करना, ज्यादा से ज्यादा अन्य औरतो एवं आवारा आदमियों को सब्ज़ बाग़ के सपने दिखाकर अपने संगठन का सदस्य बनाना और जब संख्या बढ़ जाय तो बस फूंकना, रेल रोकना तथा दूकान आदि बंद कराना शुरू. दिन में सभाएं करना तथा रात के अँधेरे में पुरुष सदस्यों द्वारा “रंगदारी” वसूलना, तथा महिला सदस्यों द्वारा मुंह काला करना एवं रंग रेलियाँ मनाना. और अगले दिन के कार्यक्रम के लिए येन केन प्रकारेण पैसे इकट्ठा करना. आज से चालीस पचास साल पहले जब न तो इतनी शिक्षण संस्थाएं थी और न ही इतने सुधारक संगठन, औरतें पढ़ नहीं पाती थीं, उन्हें बाहरी दुनिया के भड़कीले एवं चमक दमक वाले रूप का दर्शन नहीं हो पाता था. तब वे अपने शील एवं आचरण को ही अपनी पूंजी मानती थीं. पारिवारिक संबंधो एवं प्रतिबंधो का मूल्य उन्हें ज्ञात था. परिवार का कोई भी सदस्य रिश्ते एवं संबंधो के आधार पर अपने परिवार की किसी भी महिला के साथ होने वाले दुराचार के विरुद्ध मरने एवं मारने के लिए तैयार हो जाता था. और औरतो को भी भरोसा था क़ि परिवार का पुरुष वर्ग उसकी रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे सकता है. किन्तु इससे कुछ तथाकथित दिग्भ्रमित, पथभ्रष्ट, वासनालोलुप हब्सियों – चाहे औरत हो या पुरुष, की यौन पिपासा शांत नहीं हो पाती थी. इसके लिए उन्हें कुछ विपरीत योनियों वाले साथी चाहिए थे या चाहिए हैं. अब वे किस तरह ऐसे साथियों को जुटाएं? इसके लिए उन्हें सीधी सादी, भोली भाली जनता को बरगलाना एवं फुसलाना पडेगा. लडके एवं लड़कियों को उच्च शिक्षा देकर उन्हें बुद्धिमान एवं योग्य बनाने का लालच देकर गाँव के निष्कलंक वातावरण से दूर इन्द्रिय जनित भड़क दार एवं चमक-दमक वाले लुभावने पर्यावरण में प्रवेश दिलाकर वैसे ही परिवेश में रहने एवं जीवन यापन का आदती बनाना पडा. अब एक बार जो इस दुनिया में प्रवेश कर गया उसे पीछे मुड़ कर देखने की फुर्सत कहाँ? दल दल में एक बार पैर फंस गया तो उसे हिलाते जाओ और गहराई में फंसते चले जाओ. इसके अलावा नए सौंदर्य प्रसाधनो के द्वारा उनकी सुन्दरता को निखारने का लालच देना, ताकि उस लडके या लड़की की शादी सुन्दर लडके या लड़की से हो सकेगा. इसके लिए मंहगे उपकरण, साजो सामान एवं रासायनिक औषधियों की व्यवस्था कर उन्हें उस जाल में फंसाना. तथा उन औषधियों का आदती बनाकर सदा के लिए उस जाल में स्थाई रूप से बाँध देना. उसके बाद उस नए समाज के विविध नियम एवं आचार संहिता का पाठ पढ़ाना. भड़कीले वस्त्र पहनना, ऐसे पोशाक धारण करना जिससे शरीर का प्रत्येक यहाँ तक क़ि छिपा हुआ अंग भी ठीक ठीक झलक सके. और लोगो की नज़र उस तरफ बरबस ही आकर्षित हो सके. तथा वासाना की आंधी विकराल रूप से उठ सके. और इस व्यसन के उमड़ने वाले उफान में एक मात्र यौन साधना ही विकल्प दिखाई दे. और एक बार इस आंधी में उन्मुक्त रूप से उड़ने का स्वाद जिसने चख लिया उसके लिए तो बस- सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ? ज़िंदगी गर कुछ रही तो नौज़वानी फिर कहाँ? किन्तु ऐसे लडके-लड़कियों को ढूँढने के लिए ग्रामीण या सीधे सादे जन समुदाय के बीच पैठ बनानी पड़ेगी. और ऐसे लोग साधारण जन समुदाय में अपनी अलग छबि नहीं बना पाते थे. उन्हें कोई जान नहीं पाता था. वे लोक प्रिय नहीं हो पाते थे. या फिर अन्य भोले भाले पुरुष एवं औरतो को अपने विश्वास में नहीं ले पाते थे. अतः अपने शातिर दिमाग की खुराफाती उपज “सुधार” नामक “ब्रहमास्त्र” का सफल प्रयोग कर उन्हें उपरोक्त सपने दिखाना शुरू किये. लोगो में यह विश्वास दिलाने लगे क़ि वे लोग समाज की बुराईयों को मिटाने का संकल्प लिए है. वे समाज से अशिक्षा दूर करना चाहते है. औरतो के गिरते स्तर को ऊपर उठाना चाहते है. उन्हें पुरुषों के चंगुल से मुक्त करना चाहते है. उन्हें स्वतंत्र सोच विचार की ज़िंदगी देना चाहते है. और विविध लालच एवं सपने दिखाकर समाज में अपनी अलग छाप बनाना. फिर उस समुदाय से लडके लड़कियों को अलग ले जाकर उन्हें आधुनिकता का पाठ पढ़ाना. बताना क़ि वस्त्र शरीर ढकने के लिए नहीं बल्कि अंगो का ठीक ठीक, सटीक, सफल एवं जीवंत प्रदर्शन के लिए होता है. शिक्षा इतिहास-पुराण की शिक्षा लेकर नैतिकता के उत्थान के लिए नहीं बल्कि इन्द्रिय जनित सुखो की उपलब्धि के लिए यौन शास्त्र, नृत्य कला, कामसूत्र, संगीत एवं शरीर विज्ञान का अध्ययन करना आवश्यक है. ताकि एक दूसरे की भावनाओं को भड़काया जा सके. एक दूसरे को उद्वेलित किया जा सके. कारण यह है क़ि शरीर विज्ञान एवं जीव विज्ञान आदि के अध्ययन में शरीर के विविध अवयवो एवं अंगो को बार बार टटोलने से उस अंग विशेष के प्रति झुंझलाहट एवं झिझक समाप्त हो जाती है. और इस प्रकार लडके एवं लड़की को किसी भी अंग के एक दूसरे के समर्पण का कोई प्रतिरोध, विरोध या प्रतिबन्ध रह ही नहीं जाता है. और फिर शुरू होता है यौन शोषण एवं यौनाचार का अभूत पूर्व एवं उच्च स्तरीय मंचन. आज इस समाज सुधार का उत्कृष्ट नमूना किस रूप में उभर कर सामने आया है? औरतो का विविध रंग रोगन, भड़क दार वस्त्राभूषण एवं हाव भाव के द्वारा अपने शरीर के अंगो का सार्वजनिक नुमाईस बनाना और ज्यादा से ज्यादा लोगो की नज़रें अपनी तरफ आकर्षित करना,उसके बाद किसी के वशीकरण जाल में फंस जाने पर अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध बनाना, और गर्भ धारण कर लेने पर उसका “एबोरशन” करा देना. और फिर वही क्रिया पुनः दुहराना. वर्त्तमान उत्कृष्ट समाज की उच्च एवं उज्जवल विचार धारा के अनुसार यदि किसी के भी साथ शारीरिक सम्बन्ध यदि बना ही लिया गया तो क्या बिगड़ गया? क्या कम हो गया? अब शील नाम की अदृश्य चिड़िया की कल्पना के पीछे साकार एवं तात्कालिक यौन सुख को कौन कुर्बान करने जाय? उच्च एवं पढ़े लिखे औरत समाज में इस शारीरिक सम्बन्ध बनाने को ज्यादा तूल नहीं दिया जाता है. इसीलिए वासना की हबस मिटाने के लिए यदि किसी पवित्र रिश्ते से बंधे पुरुष से मुंह काला करने का भूत सवार हो जाय तो वयस्कता के नाम पर प्रेम को आधार बनाकर उससे सम्बन्ध बनाया जा सकता है, जिसका अनुमोदन आज का कानून भी कर चुका है. और इसका यदि किसी ने विरोध किया तो उसे दण्डित भी किया जाएगा. “प्रतिष्ठा ह्त्या” का नाम किस तरह अस्तित्व में आया है? आज इतने भयंकर रूप से हुए सामाजिक एवं शासकीय प्रयत्न के बाद औरत स्तर सुधार कहाँ पहुंचा है? जिस अनमोल निधि के लिए इसे जाना जाता था उसे बर्बाद कर एक मादा पशु की बुद्धि एवं स्त्री का आवरण पहनने वाला जीव. इसके सिवाय और उसके पास क्या है? आखीर उच्च शिक्षा प्राप्त कर औरत ने क्या कर दिखाया है जिसे पुरुषो ने नहीं किया? कोई ऐसा चमत्कार किसी औरत के द्वारा हुआ हो जिसे पुरुषो ने नहीं किया हो, ऐसा क्या है? यदि कोई हट के काम या कोई ऐसा काम जिसे पुरुष नहीं कर सकते उसे किसी औरत ने किया होता तो बात समझ में आती क़ि औरतो के स्तर ऊपर उठाने का यह अतिरिक्त लाभ समाज या सरकार या स्वयं औरतो के लिए लाभ कारी हुआ है. एक विचित्र काम अवश्य हुआ है क़ि औरतो ने अपना स्तर ऊपर उठाकर यह स्वयं सिद्ध कर दिया है क़ि वह भोग्या है. इसीलिए वह नित्य नए रूप एवं भाव में अपने आप को पुरुषो के सम्मुख प्रस्तुत कर रही है. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उसको भोग सकें. व्यसन के आसन पर वासना के चम्मच को उन्माद एवं जोश के हाथ से पकड़ कर अत्याधुनिक शिक्षित समाज की थाली में परस कर यौन व्यंजन को हबस के मुंह में डालना ही ऐसा अतिरिक्त काम औरतो का दिखाई दिया है जो “औरत उत्थान आन्दोलन” के बाद खुल कर सामने आया है. जब प्रकृति ने उसे औरत बनाया है तो उसे स्वीकारने में क्यों हिचक? क्या प्राचीन काल से लेकर मध्य काल तक जितनी भी औरतें हुई है वे सब बेवकूफ, जाहिल, गंवार एवं भ्रष्टा थीं? आदि काल की लोपामुद्रा, मध्य काल की रानी कर्णावती, रजिया सुलतान एवं सल्तनत काल की वे औरतें जो चित्तोड़ गढ़ में अपनी अस्मत एवं शील की रक्षा के लिए “जौहर” करते हुए अपने आप को धधकती आग में भष्मीभूत कर लिया, वे सब औरतें नहीं थीं? क्या हुमायूं के आगे रानी कर्णावती ने अपनी अस्मत एवं शील सौंप कर अपनी रक्षा के लिए उसे प्रतिबद्ध किया था? क्या झांसी की रानी टाप एवं स्कर्ट पहन कर या सलवार सूट पहन कर झांसी की लड़ाई लड़ी थी? या उन्होंने अपने कालेज के ब्वाय फ्रेंड के साथ युद्ध के मैदान में जंग लड़ा था? शायद उन्होंने वर्तमान “नारी उत्थान समिति” के द्वारा शिक्षा ग्रहण नहीं किया था. या उन्होंने किसी आधुनिक शिक्षण संस्थान में सहशिक्षा नहीं पायी थीं. आधुनिक औरत उत्थान आंदोलनों के अस्तित्व में आने से पूर्व घर परिवार में औरतो की रक्षा एवं उनकी पूजा का भाव मात्र इसलिए होता था क़ि उनके पास अनमोल निधि नारी सुलभ शील, कौमार्य एवं पारिवारिक मूल्यों के रूप में निहित थी. आज वह व्यसन, वासना एवं यौनाचार का या पाशविक हबस शांत करने की वस्तु मात्र इस लिए बन गयी है क़ि उसकी नज़रो में शील, कौमार्य एवं पारिवारिक मूल्य केवल पाखण्ड, दिखावा एवं एक पक्षीय प्रतिबन्ध के अलावा और कुछ नहीं है. उनकी समझ से ये सब चीजें आधुनिक बैंक के चेक है जिसे खूब भुनाना चाहिए. तथा उसे शेयर मार्केट में लगा देना चाहिए ताकि सेंसेक्स ऊपर उठने पर उसका ज्यादा रिटर्न मिल सके. ज़रा पूछें क़ि औरत क्या भोग्या बनी है? कौन उसे भोगता है? उसे कोई भोगता है या वह स्वयं दूसरो को भोगती है? क्या जो उसे भोगता है वह नहीं भुगतता? क्या पुरुष ही औरतो को भोगता है? क्या औरतें पुरुषो को नहीं भोगती? एक बार एक चोर का पीछा कुछ सिपाही कर रहे थे. चोर भागते भागते घन घोर रेतीले इलाके में पहुँच गया. सिपाही बोले क़ि ऐ चोर! हम तुम्हें दौड़ा दौड़ा कर मार डालेगें. चोर बोला क़ि मेरे पीछे तो तुम लोग भी उसी रफ़्तार में दौड़ रहे हो. तुम लोग मुझे दौड़ा दौड़ा कर भले न मारो पर तुम मेरे पीछे दौड़ दौड़ कर अवश्य मर जाओगे. यह आधुनिक नारी उत्थान का ही परिदृश्य है क़ि जंगल, झाडी, गली, कूचे या कूड़े दान में नवजात शिशु फेंक दिए जाते है. कारण यह है क़ि उस शिशु के साथ रहने पर उन्मुक्त रासलीला संभव नहीं है. यह है आधुनिक नारी उत्थान एवं सामाज सुधार तथा उच्च नारी शिक्षा के द्वारा प्राप्त नारीत्व एवं मातृत्व का उत्कृष्ट नायाब तोहफा. जो अधो वस्त्र है उसे ऊपर नहीं पहना जा सकता. यदि ऐसा किया गया तो वह फट जाएगा. अधो वस्त्र को अधो वस्त्र के रूप में ही इस्तेमाल करें. और अधो वस्त्र की शोभा भी अधो वस्त्र के रूप में ही है. काजल आँखों में ही अच्छा लगता है. शरीर के अन्य भाग में लग जाने पर वह कालिख कहलायेगा. आँख देखने के लिए है उसमें भोजन नहीं डाला जा सकता. आँख में भोजन या अनाज का टुकड़ा डालने पर उसका सौंदर्य नष्ट हो जाएगा. या गलती से कोई जहरीला खाद्यान्न उसमे पड़ गया तो वह फूट भी जाती है. इसलिए आँख को पलको की छाँव में रहना चाहिए. औरत यदि औरत ही बन कर रहे तो उसकी भलाई है. तभी वह सम्मान के योग्य है. अन्यथा——————————.?????????????. पाठक
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments