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भाग्य- एक मानसिक कमजोरी या बदनसीबो का प्रलाप?

भविष्य
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हठ, दुराग्रह या थोथे अभिमान को स्थाई करने या अपनी ही बात को सर्वोपरि सिद्ध करने क़ी जिद में यद्यपि व्यक्ति पतन के गोते में निरंतर गोते लगाता चला जा रहा है. किन्तु फिर भी उसे सच्चाई स्वीकारने में झिझक है. यह सबको पता है कि मिर्च का स्वाद तीखा ही होता है. या यदि स्वाद तीखा नहीं है तों वह मिर्च नहीं है. किन्तु फिर भी यदि कोई निर्लज्ज़ता क़ी सारी सीमायें तोड़ते हुए यह कहे कि मिर्च मीठी होती है, तों उसके लिये क्या कहा जा सकता है? अपने आप को सब से अलग एक विशेष महत्ता युक्त व्यक्तित्व के रूप में दर्शाने एवं स्थापित करने के लिये एक आदमी पतन एवं बेशर्मी के किसी भी हद तक जा सकता है. इसका एक ज्वलंत उदाहरण यह है कि सदियों से विवध तत्व दर्शी, ऋषि-मुनि, इतिहासकार एवं विद्वानों द्वारा भाग्य के अस्तित्व को स्वीकारने के बावजूद भी आज के विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदर्शन प्रतियोगिता में अव्वल दर्ज़ा पाने के लिये कुछ ऐसे ही मानव प्राणी भाग्य के अस्तित्व को नकार अपनी इस गिरी मानसिकता का परिचय देते चले जा रहे है.
एक ही कक्षा में अनेक छात्र अध्ययन करते है. एक ही अध्यापक, अध्ययन कक्ष, पाठ्य सामग्री, पठन चक्र- सब कुछ एक होता है. किन्तु क्या सब का परीक्षा परिणाम समान होता है? कुछ लोग इसका उत्तर यूं देते है कि जो छात्र जितना प्रयत्न करता है, उसी के अनुरूप उसे परिणाम भी मिलता है. फिर प्रश्न यह उठाता है कि कोई भी छात्र जो पढ़ने जाता है वह यही कोसिस करता है कि वह परीक्षा उत्तीर्ण कर जाय. कोई नहीं चाहता कि वह फेल हो. क्या कोई छात्र ऐसा भी होता है जो फेल होने के उद्देश्य से पढ़ने जाय? गेहूं क़ी एक बाली में अनेक दाने होते है. किन्तु क्या सब दाने एक ही आकार प्रकार के होते है? आसमान में अनेक विध बादल लगते है. किन्तु क्या सब बरसते है? एक ही माँ-बाप क़ी एक ही गर्भ-रज एवं वीर्य, से उत्पन्न संतान क्या एक ही आकार-प्रकार एवं आचार-विचार एवं व्यवहार क़ी होती है?
सुनामी के भयावह चक्रवात में आकस्मिक मौत के भयंकर आगोश में समा जाने वाले क्या सभी बेवकूफ, दुष्कर्मी, अनपढ़, गंवार एवं निठल्ले ही थे?
कर्म एवं भाग्य एक सिक्के के दो पहलू है. प्रकाश क़ी आवश्यकता अन्धकार में होती है. सच्चाई क़ी आवश्यकता झूठ के बिना पर निर्भर है. मृत्यु केवल जीवन धारियों के लिये है. कर्म का संचार भाग्य क़ी लीक पर ही संभव है.
किन्तु सही बात है——-बाँझ क्या जाने प्रसूत क़ी पीड़ा? अभागा प्राणी भाग्य के बारे में कैसे जान सकता है? यदि थोड़ी भी भाग्य उसके पास होती तों उसे पता चलता कि भाग्य क्या कहलाती है. तों इसमें अभागे का क्या दोष? जो व्यक्ति सदा ही कीचड एवं कूड़े दान में ही गुज़र बसर करते चला आ रहा हो उसे देवालय क़ी पवित्रता एवं स्वच्छता का ज्ञान कैसे हो सकता है? नाली के कीड़े को नाली में ही रहना अच्छा लगता है. अभागे को भाग्य हीनता में ही जीवन व्यतीत करना अच्छा लगता है. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद?
विद्यालय के एक ही अध्ययन कक्ष में एक ही अध्यापक के मार्ग दर्शन में शिक्षा ग्रहण करने वाले, एक ही विषय एवं एक ही समय में पढ़ने वाले विविध छात्रो में कोई विद्यालय साईंकिल से जाता है तों कोई वातानुकूलित स्वचालित वाहन से. चुनाव सभी लड़ते है, प्रधान मंत्री कोई एक ही बनता है. गुलामी क़ी भयंकर वेडी में ज़कडे भारत को आज़ादी दिलाने के लिये खुदी राम बोष, बाल कृष्ण गोखले, सरदार भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, सुभाष चन्द्र बोष आदि ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये. किन्तु जन्म तिथि एवं मरण तिथि का अवकाश नपुंसक एवं देश द्रोही जवाहर लाल नेहरु, तथा चमार, मुसहर, डोम, हलखोर, मेस्तर एवं दुसाध आदि का वोट बटोरने के लिये उन्ही क़ी बिरादरी से उठाकर ज़बरदस्ती संविधान निर्मात्री सभा का अध्यक्ष बनाए गये भीमराव क़ी मनाई जायेगी. जो भी कायर एवं देश के प्रति सम्मान एवं राष्ट्र भक्ति से बेगाना थे और स्वतन्त्रता संग्राम के समय मरने के भय से डरपोक कुत्तो के समान कुत्ते पालने वाले संपन्न धनाढ्यो क़ी देहरी पर जूठे रोटी के टुकडे के लोभ में दुबके रहते थे. तथा देश को आज़ादी मिलने के बाद दरवाजे पर आकर भौंकना शुरू कर दिये. क्या ये ही सब लोग कर्त्तव्य परायण, देशभक्त, समाज सेवी एवं कर्मठ थे? क्या जिन लोगो ने अपने प्राणों क़ी आहुति दे दी वे सब निठल्ले, अकर्मणय मूरख एवं जाहिल थे? जी नहीं बल्कि प्राणों क़ी आहुति उन बलिदानियों क़ी नसीब में था. तथा उसका सुखोपभोग जाहिलो, देशद्रोहियों, नपुन्सको एवं भ्रष्टाचारियों के नसीब में था. अन्यथा ऐसे कुकर्मियो क़ी जगह उन बलिदानियों के जन्म एवं पुण्य तिथि को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता. किन्तु नसीब अपना अपना.
इतना सब रोज़ देखने के बाद भी कोई यह कहे कि भाग्य कुछ भी नहीं होता है. यह एक वहम या मानसिक कमजोरी है, तों उसके लिये क्या कहा जा सकता है? लेकिन कुछ भी कहने क़ी आवश्यकता नहीं है. क्योकि उन्होंने खुद ही स्वीकार कर लिया है कि भाग्य को मानना एक मानसिक कमजोरी है. तों ऐसे मानसिक रूप से विक्षिप्त प्राणी से उन्माद पूर्ण प्रलाप एवं प्रमादी व्यवहार के अतिरिक्त और किस तरह के आचार-विचार एवं भावाभिव्यक्ति क़ी अपेक्षा क़ी जा सकती है?

विशेष- मेरे समस्त लेख प्रायः प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये प्रतिबंधित है.


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