वंचक- आप क्या कह रहे है, मेरी समझ में नहीं आ रहा है? प्रवंचक- नासमझ को हर बात समझ में नहीं आती. वंचक- तो इसका तात्पर्य यह है क़ि आप भी नासमझ ही है क्या? प्रवंचक- मै कैसे नासमझ हूँ? वंचक- क्योकि आप को समझ नहीं है क़ि मै कैसे समझ सकता हूँ? प्रवंचक- यह तुमने कैसे समझ लिया? वंचक- क्योकि मै तो नासमझ हूँ. प्रवंचक- तुम्हारे कहने का मतलब मैं नहीं समझा? वंचक- आप क्यों नहीं समझे? आप तो समझदार है? प्रवंचक- इसीलिए तो यह समझ कर पूछ रहा हूँ. वंचक- पूछ नहीं रहे है बल्कि समझना चाहते है? प्रवंचक- चलो समझाओ. वंचक- पहले यह स्वीकार करें क़ि आप नासमझ है. तभी मैं आप को यह विषय समझा सकता हूँ. प्रवंचक- चलो मै समझ लिया क़ि मै नासमझ हूँ. वंचक- फिर आप ने अपने आप को समझदार कहा? आप ने यह कैसे समझ लिया क़ि आप नासमझ है? प्रवंचक- मै तुम्हारी बात नहीं समझा. फिर समझाओ. वंचक- चूंकि मैं नासमझ हूँ. इसलिए कभी समझ से मेरा पाला नहीं पडा. और समझ मेरे लिए सदा ही अजूबा बना रहा है. इसलिए जब कभी कोई अजूबा दिखाई देता है तो उसे समझने की कोशिस करने लगता हूँ. प्रवंचक- जब तुम नासमझ हो फिर यह कैसे समझ जाते हो क़ि अमुक चीज अजूबा है? वंचक- क्योकि मेरे पास समझदारी की नासमझी है. प्रवंचक- बेटे! इसके विपरीत मेरे पास नासमझी की समझदारी है. वंचक- इसका मतलब यह क़ि हम दोनों के पास नासमझी की समझदारी है? प्रवंचक- नहीं बेटे! यह अब प्रमाणित हुआ है क़ि हम दोनों के पास समझदारी की नासमझ है.
और समझदारी के कारण नासमझो की समझदारी भरी प्रतिक्रया का विकल्प बंद कर दिया गया है.
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