बड़ी बड़ी तत्वदर्शन से ओतप्रोत लच्छेदार वाणी में अपने विचारोंको जोरदार रूप से लोगो के सामने रखने क़ी होड़ में लगे लोगों से मैं कुछ प्रश्न का उत्तर चाहूँगा.
क्या विवाह का तात्पर्य केवल शारीरिक सम्बन्ध बनाकर बच्चे पैदा करना है?
क्या विवाह का तात्पर्य केवल वासना क़ी हबस क़ी पूर्ती का लाइसेन्स प्राप्त करना है?
क्या माता-पिता, भाई-बहन एवं बेटा-बेटी का प्रेम, प्रेम नहीं कहला सकता?
क्या किसी से प्रेम है तों इसका उपसंहार केवल शारीरिक सम्बन्ध पर ही होता है?
क्या औरत एवं मर्द अब गाय-भैंस बन गये है. जिन्हें बच्चा पैदा करने के लिये किसी विकाश खंड या पशु हास्पीटल जाना पडेगा. जैसे लोग अच्छी नस्ल के दुधारू पालतू पशु पाने क़ी इच्छा से एक सही समय आने पर धडा धड बच्चे पैदा करना शुरू कर देगें.
यह आवश्यक है कि अट्ठारह वर्ष क़ी आयु हो जाने पर लड़की और इक्कीस वर्ष क़ी आयु के लडके के जनन तंत्र से सम्बंधित सारी ग्रंथियां परिपक्व ही हो जाती है?
तों क्या शादी से पूर्व इसका भी मेडिकल चेकअप होना चाहिए?
क्या शासकीय या व्यक्तिगत तौर पर एकत्र ये आंकड़े कि खूब अच्छी तरह पढ़ाई लिखाई किये लडके लड़कियों के विवाहित जोड़ों के द्वारा व्यभिचार के परिणाम स्वरुप गर्भ ह्त्या के प्रकरण कई गुणा ज्यादा है अपेक्षाकृत बाल विवाहित जोड़ों के?
तों क्या अब विवाह पूर्व लडके लड़कियों को काम-सूत्र का व्यावहारिक एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण लेकर विवाह करना पडेगा? ताकि उनमें यौन सुख एवं जनन क्रिया में कोई अड़चन न हो?
क्या मिहनत मज़दूरी कर के अपने बच्चो का भर पूर लालन पालन करने वाले बाप एवं अपने छाती के खून को दूध में परिवर्तित कर बच्चे को पिला कर बड़ा करने वाली माँ अपने बच्चो के सुखद एवं सफल भविष्य को अन्धकारमय बनाने के लिये ही ये सब करते है? जो उनकी संतान उन्हीं के मर्जी के खिलाफ या उनके पसंद को धता बताते हुए तथा अपने आप को अपने भले बुरे के प्रति सचेत बताते हुए अपनी मर्जी से विवाह कर लेते है?
उस माँ-बाप का व्यावहारिक अनुभव सर्वथा निरर्थक एवं उपेक्षणीय है?
क्या लुक-छिप कर, या लड़का-लड़की भगाकर कही अँधेरे में प्रचलित सामाजिक मान्यताओं एवं मूल्यों के विरुद्ध केवल “प्रेम” के नाम पर किया जाने वाला विवाह वास्तव में प्रेम दर्शाने के लिये किया जाता है?
क्या इस तथाकथित “प्रेम” क़ी नींव पर खड़ी क़ी गयी शादी भर भराकर कुछ ही दिनों में टूट नहीं रही है?
क्या बिना किसी पूर्व प्रेम के क़ी गयी सारी शादियाँ असफल हो जा रही है? ज़रा विविध माध्यमो से जुटाए गये सरकारी एवं गैर सरकारी आंकड़ो पर नज़र दौडाएं.
जब से ऐसी जागरूकता का अभियान जोर शोर से भारतीय समाज में छिड़ा है तब से यौनाचार एवं व्यभिचार का आंकड़ा शीर्ष पर पहुँच चुका है. सामाजिक मान्यताओं के मज़बूत परदे के पीछे किया जाने वाला यौन समबन्ध अब खुली सड़क पर सार्वजनिक रूप से किया जाएगा. क्योकि वर्त्तमान समाज सुधार समिति क़ी दृष्टि में जब सभी जानते है कि जवान पुरुष एवं जवान औरत एक साथ लिपट कर क्या करते है. तों फिर उसे छिपाना किससे? क्या किसी ने इसकी तरफ देखने क़ी ज़हमत उठायी है?
जो कोई भी सज्जन इसका उत्तर देगें वह अपने दिल पर हाथ रख कर ही उत्तर देगें. थोथे आदर्श से भरे लच्छेदार भाषा में उत्तर क़ी कोई आवश्यकता नहीं है.
विशेष– इस लेख पर प्रतिक्रिया का विकल्प खोलना पडा है.
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