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नीला सियार- पथ भ्रष्ट होने का फल

भविष्य
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जिस खेत में फसल लगानी हो या जिस जगह पर खेती करनी हो उस वातावरण, पर्यावरण एवं जलवायु के बारे में ही विचार एवं कार्यवाही करनी चाहिए. ग्रामीण अंचल में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत कही जाती है क़ि
“विवाह होवे हल का तथा गीत गावे जुवाठा का.”
हमें जहां पर रहना है, जिस समाज में जिस समुदाय में एवं जिसके साथ रहना है सबसे पहले उस जगह, समाज एवं देश काल के बारे में सोचना एवं विचारना चाहिए. हर एक सिद्धांत प्रत्येक जगह लागू नहीं हो सकता है. यदि ग्रीन लैंड या आयर लैंड में रहना है तो उस जगह एवं देश काल एवं मान्यता का अनुपालन आवश्यक है. वहां पवित्र धार्मिक स्थलों पर भी जूता आदि नहीं निकाला जा सकता. किन्तु यदि वही सिद्धांत अपने एशिया महाद्वीप में लागू किया जाय तो यह उचित नहीं होगा.
एक बड़ी अच्छी कहावत याद आ रही है. एक बार एक व्यक्ति खाड़ी के देश में गया. वहां वह बहुत दिनों तक रह गया. धीरे धीरे वह वहां की संस्कृति, भाषा, बोल-विचार एवं सभ्यता में रच बस गया. जब वह बहुत दिनों बाद स्वदेश वापस लौटा तो एक बार बीमार पडा. उसे प्यास बहुत जोर से लगी थी. वह “आब आब’ जोरो से चिल्ला रहा था. अरबी में पानी को “आब” कहते है. उसकी यह भाषा कोई समझ नहीं पा रहा था. और अंत में वह तडफडा कर मर गया. इसी को कहावत में कहा जाता है क़ि-
“पीया गए परदेश सीखी उलटी बानी. आब आब कह कह के मर गए पास पडा रहा पानी.”
जहां की जो भाषा, संस्कृति, आचार, सिद्धांत, मान्यता होती है वह वहीं के लिए उचित एवं आवश्यक होती है. एनासिन की टिकिया हर दर्द की दवा नहीं होती है.
हम जहां जिस भाषा, संस्कृति, आचार, व्यवहार एवं वातावरण में पाले एवं बढे है, हमारे लिए उसी परिवेश में रहना उचित एवं सुखदाई होगा. यदि हम जानबूझ कर नीला सियार बनाने की कोशिश करेगें तो हश्र भी तो वही होगा. यद्यपि यह कहावत सर्व विदित है. फिर भी प्रसंग वश कह देता हूँ.
एक बार एक प्यासा सियार किसी धोबी के कपड़ा धोने के हौद में पानी पीने गया. उस हौद में नील घोल कर रखा गया था. संयोग से वह सियार फिसल कर उस हौद में गिर गया. और उसका रंग नीला हो गया. अब वह अपनी बिरादरी से अलग रंग का दिखाई देने लगा. वह जंगाल में जाकर प्रचारित किया क़ि भगवान ने उसे अपनी बिरादरी का मुखिया बना कर भेजा है. सबको मेरा कहना मानना होगा. सब लोग उसके अलग रंग से प्रभावित हुए थे. सब उसकी बात मान गए. संयोग से एक दिन सब सियार मिलकर हुआं हुआं करना शुरू किये. अपनी आदत के अनुसार यह भी आवेश में आकर उनके सुर में अलापने लगा. और उसकी पोल खुल गयी. और सबने मिलकर उसे मार डाला.
जान बूझकर मूढ़ता वश या किसी पूर्वाग्रह के वशीभूत होकर हठवश नीले सियार की तरह दूसरे के सिद्धांत को दूसरे पर थोपना घातक ही होता है. इस मूढ़ता का एक और उदाहरण देखिये.
बीज गणित में एक समीकरण का सवाल आता है,
३+१= ४ ———(१)
२+२=४ ———-(२)
इसलिए
२+२=३+१
यह सिद्धांत सिर्फ बीज गणित के लिए है. क़ि तीन धन एक बराबर भी चार होता है. तथा दो धन दो बराबर भी चार होता है इसलिए तीन धन एक बराबर दो धन दो.
अब देखिये-
घोड़ा खाता है.
आदमी खाता है.
इसलिए आदमी घोड़ा है.
क्या यह तर्क संभव है? जो सिद्धांत जहां के लिए है, वही के लिए उचित है. काजल आँखों में ही शोभा पाता है. कपडे पर लग जाने पर वही काजल कालिख कहा जाता है.

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