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मंदिरों की अथाह संपदा एवं चोरो की गिद्ध दृष्टि

भविष्य
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श्री गिरिजा शरण जी
देश की उन्नति एवं विकाश एक ऐसा वाक्य है जो सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है. किन्तु एक ही बात का उत्तर आप अपने आप में स्वयं ढूँढीयेगा. मंदिरों की संपदा के अलावा जो विविध स्रोतों से सरकारी खजाने में जो जनता का पैसा इकट्ठा कर के रखा था. उसका क्या उपयोग हुआ है? ज़रा गौर फरमाईयेगा.- हर्षद मेहता का शेयर घोटाला जो ले देकर बंद कर दिया गया, राजीव गांधी का बोफोर्स तोप घोटाला जिसे जनता के विकाश के हित में बंद कर दिया गया, कल्पनाथ राय का चीनी घोटाला जिसे देश हित में बंद कर दिया गया, लालो प्रसाद का चारा घोटाला, अलकतरा घोटाला, औषधि घोटाला जिसे समर्थन के लिए बंद कर दिया गया, तेलगी का स्टाम्प घोटाला जिसे देश हित में कुछ ले देकर बंद कर दिया गया, कलमाडी का खेल घोटाला जिसे पार्टी हित में देश के विकाश को देखते हुए बंद कर दिया गया, एन आर एच.एम् घोटाला देश हित में उन्नति के लिए किया गया, ए. राजा, कनिमोरी, येदुरप्पा आदि के द्वारा किये गए घोटाले सब देश हित के लिए आवश्यक थे. इसीलिए जनता के पैसे वसूल कर उन्हें विकेन्द्रित किया ताकि इस प्रकार देश हित में इसका उपयोग हो सके. कसी एक भिखारी का नाम बता सकते है जो लोक सभा या राज्यसभा का चुनाव जीत कर मंत्री बना हो? तो अब चाहते है क़ि मंदिरों में श्रद्धा एवं विश्वास के साथ दिया गया जनता का पैसा भी इसी तरह सरकार के खजाना रूपी मंदिर में विकेन्द्रित कर दिया जाय ताकि घोटाले के रूप में उनका भी सदुपयोग हो?
गिरिजा शरण जी, अभी आज भी इन मंदिरों में स्थित गुरुकुलो में तथा इनके द्वारा चलाये जा रहे चिकित्सालयों में मुफ्त सेवा ही प्रदान की जाती है. सिर्फ राज नेताओं एवं मंत्रियो के द्वारा प्रश्रय प्राप्त धार्मिक संगठनो में ही व्यभिचार एवं लूट खसोट चल रहा है. प्राचीन मंदिरों में आज भी लोग जाकर चैन, शान्ति एवं एक तरह के आध्यात्मिक सुख का अनुभव करते है. जब क़ि सरकार के खजाना रूपी मंदिर में जनता रो रोकर पैसा देती है. क्योकि उनसे डंडे के बल पर वह वसूली की जाती है. तथा उसे हाथी की मूर्तियों, उपजाऊ ज़मीन को हड़प कर विलासिता के संसाधनों से सुसज्जित गाडियों के सरल संचालन हेतु हाई वे बनाने एवं बड़े बड़े माल बनाने में ताकि विदेशो से भी पैसा उसमें लाया जा सके, बार एवं रेस्टुरेंट खोल कर उसमें सुनदर लड़कियों को लाकर उनसे जनहित में शील लुटाने के लिए मज़बूर किया जा सके.
देश की कितनी प्रतिशत जनता इन माल रूपी बाजारों में सामान खरीदने जाती है? इन हाई वे पर देश की कितने प्रतिशत जनता की लक्जरी गाड़ियां चलती है? बड़े बड़े मंहगें विद्यालयों में कितने प्रतिशत गरीब जनता के लडके लड़कियां शिक्षा प्राप्त करते है? जब क़ि इन गरीबो की झोली पर टैक्स के नाम का डाका दल कर तथा उनसे पैसा ऐंठ कर सरकारी खजाने में जमा किया जाता है. और इसके बदले में उन्हें ही इन से महरूम रखा जाता है.
निश्चित रूप से जो भी मंदिरों की संपदा का विकेंद्रीकरण चाहते है. वे या तो स्वयं चोर है, या चोरो के साथ है, या इन व्यभिचारियो के एजेंट है, या फिर उन्हें इन मंदिरों से कमीशन नहीं मिलता है. जो चाहते है क़ि मंदिरों की संपदा को सरकारी खजाने में जमा कराया जाय. तथा उसे देश एवं जनता के विकाश के नाम पर विविध रूप में लूट लिया जाय. कोई अन्य आदमी ऐसी अनर्गल एवं मूर्खता पूर्ण बातें कर ही नहीं सकता.
————————आदरणीय श्री गिरिजा शरण जी, संभवतः मेरे लेख पर आप के विचार का समाधान मिल गया होगा. मैंने इस ब्लॉग को सिर्फ आप के छोटे से प्रश्न के उत्तर में ही लिखा है. धन्यवाद.
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