Menu
blogid : 10694 postid : 66

“पत्नी चाहे कितनी प्यारी हो उसे भेद बताना ना चाहिए.

भविष्य
भविष्य
  • 39 Posts
  • 141 Comments
“पत्नी चाहे कितनी प्यारी हो उसे भेद बताना ना चाहिए.” हाय रे भक्ति गीत!
श्रद्धा एवं भक्ति में डुबाने की कोशिश करने वाले ऐसे भक्ति गीत किस गड्ढे में डुबायेगें, यह स्वतः स्पष्ट है. वह पत्नी जो जन्म (जब से पत्नी के रूप में अवतरित हुई) से लेकर पति की अर्द्धांगिनी, सुख-दुःख की एक मात्र संगिनी, छाया के समान सदा साथ रहने वाली, पति के हर सुख के लिए निरंतर विविध पूजा एवं उपवास करने वाली तथा उसके स्वास्थय एवं दीर्घायु के लिए अपने को न्यौछावर करने वाली पत्नी के प्रति इतने श्रद्धा पूर्ण शब्द!!!!???
खैर  विविध संशोधको, सुधारको एवं अत्याधुनिक पढ़े लिखे विचारको के उच्च स्तरीय समाधान एवं समायोजन के परिणाम स्वरुप जिस प्रकार के समाज का रूप उभर कर सामने आता दिखाई दे रहा है उसके लिए यह भक्ति गीत सर्वथा उचित एवं सटीक है. क्योकि पत्नी को हर tarah के काम को संपादित करने के लिए एक मुहर की आवश्यकता होगी. जिसके लिए पति एक मात्र उपकरण है. तथा पति के लिए भी घर पर एक मनोरंजन का साधन होना चाहिए. जिसके लिए एक समाज एवं कानून द्वारा प्रमाणित एक पत्नी ही उपयुक्त साधन है. फिर इतने मधुर सम्बन्ध को स्थाई बनाने के लिए यह आवश्यक है क़ि दोनों एक दूसरे से अपना अपना भेद छिपाए रखें. वैसे इतने उच्च स्तरीय पढ़े लिखे समाज में एक पति एवं पत्नी के बीच कुछ छिपा हुआ रह ही नहीं सकता है. दोनों एक दूसरे की इच्छा से परिचित एवं अपने अपने उत्तरदायित्व के प्रति जागरूक होते है. क्योकि दोनों ने एक दूसरे का विवाह के पूर्व भौतिक एवं रासायनिक परिक्षण किया है. दोनों की रूचि एवं स्वभाव पर दोनों एक साथ कई दिन एवं रात “रिसर्च एवं आईडिया इनोवेसन” में बिताये है. और इतना अनुभव प्राप्त कर चुके है क़ि अब हर क्रिया-प्रतिक्रया निर्बाध गति से संपन्न कर सकते है. दोनों में से किसी को एक दूसरे के प्रति कोई गिला शिकवा नहीं है. क्योकि दोनों को एक दूसरे के गुण-अवगुण का ज्ञान है. फिर शिकायत किससे और क्यों? और फिर एक दूसरे से क्या भेद छिपाना?
किन्तु एक बात ज़रूर एक दूसरे से छिपानी पड़ेगी. और वह है क़ि एक की नज़र में दूसरा बिलकुल पाक साफ़ है. यह भेद दोनों को छिपाना ही पडेगा.
और फिर देखिये दोनों खुश एवं सुखी नज़र आयेगें. क्योकि न तो पति को पत्नी के घर आने का इंतज़ार रहेगा. और न ही पत्नी को पति के घर आने का. दोनों निश्चिन्त, निष्कलंक एवं दुविधा से दूर रात की नीद सुख चैन में लेगें. बस यही तो चाहिए. दोनों खुश रहें. दोनों सुखी रहें. चाहे जहाँ भी रहें. जो भी करें. जैसे रहें.
अब भविष्य के लिए कौन वर्त्तमान को दांव पर लगाने जाय? किसने कल देखा है? ये रहीम एवं कबीर सूफी लोग आधुनिका पति-पत्नी के पवित्र एवं प्रेम पूर्ण सम्बन्ध के बारे में क्या जाने? सोचा न समझा और बस जो मन में आया कह दिया. “काल्ह करे सो आज कर”. उनको क्या पता क़ि-
‘आज करे सो काल्ह कर, काल्ह करे सो परसों.
हाय  हाय क्या करना यारो जीना है अभी बरसों.”
तो यदि बरसों जीना है तो फिर तो कुछ न कुछ रखना ही पडेगा. चाहे छिपा कर रखे या दिखा कर. लेकिन दिखाकर रखने में वह चीज तत्काल सम्मुख आ जायेगी जिसे कुछ दिन बाद प्रकाशित होनी चाहिए. और जो अंतराल मौज मस्ती में गुजरना चाहिए था. कारण यह है क़ि इस तरह की मौज मस्ती में एक प्रतिद्विद्विता का भाव आ जाता है. क़ि देखो मैंने वह काम पहले कर लिया जो तुम्हारे द्वारा अब बाद में किया जाएगा. इस तरह एक दूसरे को पछाड़ने का भाव सदा छिपा रहता है. और इसे छिपाकर रखने में ही इस दाम्पत्य जीवन का सच्चा सुख है.
धन्य हो गायक “विशू” जी जो आप ने किसी त्रिकाल दर्शी की तरह आगे आने वाली दशा को ध्यान में रख कर इस गीत का इजाद किया.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply